बहुत समय बाद गांव जाने का मौका मिला। मेरा गांव बहुत बदल गया है। बिजली, सड़कें और "मॉडर्न" ज़माना। मेरे चाचा-ताया अब बूढ़े हो चले हैं। बहुत से दादा-दादी अब दिखते नही है और बहुत सारे मरने की आस में आसमान में नज़र गड़ाए अपने नए मकानों की छतों पर यमराज के दिव्य वाहन का अवलोकन करते रहते हैं, लेकिन नाजरो देवी अभी भी वैसी ही है, जैसी दस बरस पहले थी।
नाजरो देवी हरिजन है। गांव के समाज में उसे निम्न जाति का दर्जा प्राप्त है। ताज्जुब की बात यह है कि सभी हरिजन लोग गांव के निचले इलाके में रहते हैं जबकि नाजरो का घर राजपूतों के आसपास और गांव के ऊपरी इलाके में था। ऊँचाई पर होने की वजह से नाजरो का कच्चा मकान आंधी तूफान में ढह जाया करता था। उसे भौगोलिक हलचलों की वजह से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था अतः उसने गांव वालों की सहायता से अपना घर बाकी हरिजनों के साथ स्थानांतरित कर दिया।
मुझे अच्छी तरह से याद है जब मैं शहर जाने से पहले दादी के साथ घास काटने जाया करता था तो नाजरो देवी दादी के साथ जी भर के बातें किया करती थी। कभी उसके कच्चे मकान से हुई परेशानियों की दास्तान तो कभी अपने इकलौते बेटे की शरारतों की शिकायत। हमारी घासिणी नाजरो देवी के पुराने घर के आस पास थी अत: घास काटने के बहाने नाजरो से रोज मिलना-जुलना हो जाया करता था। मैं नाजरो और दादी की बातों को बड़े चाव से सुना करता था। वो बेचारी दीन महिला दादी के लिए हुक्के में तम्बाकू तैयार कर अपना सारा दर्द उगल दिया करती थी। एक दिल दहला देने वाली बात मुझे याद है जब नाजरो बताती है कि आंधी तूफान के चलते उसके कच्चे मकान के छत से सारा घास फूस उड़ गया। आस पास कोई न होने की वजह से वो इतनी सहम गयी कि उसे घर से निकलकर अपनी गाय के पास जाकर शरण लेनी पड़ी। नाजरो भावुक होकर बताती है कि अकेलेपन में वो कैसे अपनी गाय को गले से लगाकर फूट-फूट कर रोयी।
नाजरो देवी का मरद नही था। लोग कहते हैं कि उसकी मृत्यु कम आयु में ही हो गयी थी जिसके कारण उस बेचारी को स्वयं ही सारा काम करना पड़ता था। उसका बेटा मेरे साथ ही पढ़ता था। हालांकि गरीबी के कारण उसकी शिक्षा पांचवीं से ज्यादा नहीं हो सकी परन्तु नाजरो ने उसमे जीवनयापन के सारे गुण डाल रखे है। सुनने में आया कि नाजरो का उसके जेठ के बेटे के साथ ज़मीनी वाद-विवाद चला हुआ है। वो बड़ा खेत जो बंटवारे के वक़्त नाजरो को मिला था, वो अब उससे छिन जाने वाला है। लेकिन अधिकतर लोग नाजरो के पक्ष में है क्योंकि नाजरो ने बरसों काम करके उस बंजर भूभाग को खेती करने लायक बनाया है।
कुछ लोग मानते हैं कि नाजरो डंकिनी है, उस अनपढ़ वृद्ध महिला को जादू टोना आता है। इस बात के मुख्यतः दो तर्क दिए जाते हैं। एक तो नाजरो के चेहरे पर बुढ़ापा दस्तक नहीं देता और दूसरा उसे लोगों के काम धंधे की अच्छी खासी जानकारी रहती है। अब अगर किसी को दिन-दुनिया की ख़बर रहती है तो ज़रूरी है कि वो इंसान टोना-टोटका जानता हो? और रही बात बुढ़ापे की तो एक दिन मैने राह चलते बातों-बातों में नाजरो से पूछ ही लिया कि वो इतनी मेहनती कैसे है और ऐसा क्या जादू है जिसके चलते वो बूढ़ी नही हो रही है। इसके जवाब में नाजरो बोली, "अस्सी बरस की हो गयी हूँ भइया, भला अब कौन सी जवानी झलक रही है मेरी काया से? बूढ़ी हो गयी हूँ मैं। वो बात अलग है कि मुझे चुपचाप नही बैठे रहने की आदत नहीं है लेकिन सच कहूं तो अब थकावट होती है, पहले के जैसे दिन नही रहे अब। धीरे-धीरे सब बदल रहा है। नए-नए खान पान, नए-नए रोग और उनकी नयी-नयी दवाइयां। पहले के लोग दोपहर को खेत बनाकर घर वापस आ जाया करते थे। दिन भर काम करो, तो ही रात को चैन की नींद आती थी। काम करते रहना चाहिए भइया, वरना शरीर को किस्म-किस्म की बीमारियां घेर लेती हैं और मैं तो हूँ ही ग़रीब, बीमार हो गयी तो घर में पड़े-पड़े दम तोड़ दूंगी। कोई अस्पताल भी नहीं ले जाएगा।" इस पर मैने कहा कि अब तो तुम्हारा बेटा भी बड़ा हो गया है, वो खेत खलियान संभाले, तुम घर बैठ के चूल्हा-चोंका करो। नाजरो बोली, "मुझसे नही बैठा जाता घर पे। बाहर जाती हूँ तो थोड़ी बहुत कसरत हो जाती है। शरीर मे स्फूर्ति आती है, भूख लगती लगती है तो चार-पांच रोटियां आसानी से खा लेती हूँ। और जो तुम बुढ़ापे की बात कर रहे हो वो कोई जादू टोना नहीं बल्कि मेरे चलते फिरते रहने का परिणाम है। समझे भईया?"
मैं अवाक था। एक निर्धन अनपढ़ महिला इतनी अच्छी बातें कैसे कर सकती है। इतना ज्ञान कैसे है नाजरो देवी के पास? जितनी गर्म आग होगी, औज़ार उतना ही प्रभावशाली होगा यह बात मैंने नाजरो के जीवन से सीखी। नाजरो का सम्पूर्ण जीवन अनुभवों से भरा हुआ है तभी तो एक स्नातकोत्तर लड़के को इतनी अच्छी बातें बता पा रही है।
नाजरो अपनी हदें जानती है। उसे इस बात का ज्ञान भली भांति है कि वो एक हरिजन महिला है। गांव के समाज के अनुसार वो किसी भी राजपूत को काका, मामा या बेटा नही कहती। ठाकुर-ठकुराईन कहकर सभी को सम्बोधित करती है। नाजरो अपने द्वारा जुटाए हुए संसाधनों से संतुष्ट है। वो मेहनत करके घर गृहस्थी चलाती है। किसी भी व्यक्ति विशेष या वर्ग पे निर्भर नही रहती, शायद इसी वजह से उसे कभी कुछ मांगने की आवश्यकता नही पड़ती।
नाजरो देवी अभी दस बीस साल और जीएगी। पिछले आषाढ़ उसने अपना बेटा भी ब्याह दिया। अभी तक उसके पास एक दो पोता-पोती भी हो गए होंगे। मुझे पता है कि नाजरो कभी रुकेगी नही, अपनी आखिरी सांस तक चलती रहेगी, मेहनत करती रहेगी। लोग उसके कार्यों से प्रभावित भी होते रहेंगे और उसपर बिभिन्न प्रकार के लांछन भी लगाते रहेंगे लेकिन मेरे लिए नाजरो देवी का जीवन सदैव प्रेरणादायी रहेगा।
✍️ किरनेश पुंडीर
गांव बिरखना-सखोली,
पो०ओ० कोड़गा (173029),
तहसील कमरऊ, ज़िला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश।
Bohot hi sunder lekhan hai mitr... Kaafi prathibhawaan ho aap ♥️♥️
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