Saturday, 15 February 2020

घर में नहीं रहता है कोई

दुबके पड़े होते हैं कोने में
टकटकी लगाए
झपकती नहीं पलकें अब 
एकाग्र हो गया है आदमी
रखते हैं खबरें तमाम
बैठकर ही दुनिया का
अवलोकन कर लेते हैं आदमी 
सुख-दुःख किसी से
नहीं बंटता अब
मजबूत नहीं मजबूर 
हो गया है आदमी
आती नहीं आवाज घर से
खामोश रहते हैं आदमी 
बातचीत का सिलसिला 
सिमट गया है संदेश में
मन ही मन मुस्कुराते है
टिप्पणी कर ही 
दुख जताते हैं आदमी
घर में रह कर भी
घर में नहीं रहता है कोई। 

डाटा के चक्कर में
आटे की अहमियत नहीं
फेसबुक के चक्कर में
रिडिंग बुक भी याद नहीं
न शिकवा कोई फरीयाद नहीं
सिमट गए हैं रिश्ते
वटसेप पर 
हालचाल नयी पुरानी
बातें मिल जाती फेसबुक पर
घर में रह कर भी
घर में नहीं रहता है कोई। 

✍️ राजेश सारस्वत

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