(लघुकथा)
घर से निकलते ही महसूस हुआ कि पडोस से तीखी नोकझोंक की आवाजें आ रही है। शायद चिंटू के पापा, चिंटू को डांट रहे थे। तभी चिंटू की माताजी आवाज़ सुनी "आखिर क्यों आसमान सर पर उठा रखा है, बच्चा है जो हुआ सो हुआ अब मिट्टी डालो" दरअसल चिंटू एक सौ रुपये लेकर दुकान पर गया था और पन्द्रह रूपये लेकर वापिस आया लेकिन खर्च का हिसाब समझाने में असमर्थ रहा तभी से पिताजी लगातार डांट रहे थे।
चिंटू के पापा ने अचानक से पुकारा, "शर्मा जी नमस्कार, प्लीज़ आईए, बड़े दिनों बाद दर्शन हुए! कुशलक्षेम पूछने के बाद अब 'चाय पर चर्चा' की विधिवत शुरुआत हो गयी। घर का माहौल अब काफी हल्का-फुल्का हो रहा था। हमारी चर्चा भी कुशलक्षेम से होते हुए राष्ट्रीय राजनीति को निपटाने के बाद धीरे-धीरे देश-प्रदेश के बजट पर पहुंच चुकी थी।
चाय और चर्चा के बाद मैंने समय देखते हुए कहा अच्छा जनाब अभी चलता हूँ। तभी चिंटू बोल पड़ा अंकल टाईम कितना हुआ? मैं तपाक से बोल पड़ा 'डेढ़ बज गया'। सभी मुस्कुरा रहे थे, जोर-जोर से हंसते हुए चिंटू फिर से बोला 'डेढ़'? यह कितने होते हैं। चिंटू के माता-पिता भी कहने लगे, अरे शर्मा जी समय के साथ चलो, डेढ़-ढाई तो पुराने जमाने की बातें हैं। अब बच्चें इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ते है।
शर्मा जी, आप भी गांव के गंवार ही रह गए! यह बोलते ही चिंटू को समझाने लगे अरे बेटा डेढ़ मतलब 'वन थर्टी बज गए'। अब मेरी मुस्कान भी चरम सीमा पर थी, वन थर्टी - बज गए? सारांश समझ आ रहा था कि हमारे बुजुर्गो के प्रति हमारी धारणाएं चाहे कुछ भी रही हो, वास्तव में शिक्षित एंव वैज्ञानिक जीवनशैली हमारे 'गांव के गंवारो' की थी। वर्तमान समाज भले ही स्वीकार न करें, लेकिन प्राचीनकाल हमें ज्ञान के शिखर पर ले जाने वाला रहा और वर्तमान सर्वनाश की ओर!
सूरज की किरणों एंव रोशनी से समय की पहचान करने वाले हमारे बुजुर्ग भारतीय मुद्रा कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई, पैसा एंव रूपये का हिसाब ज़ुबानी उंगलियों पर रखते थे। बहुभाषी होने के साथ-साथ हाव-भाव से ही इंसान को परखने वाले मनोवैज्ञानिक थे। डेढ़ को 'वन थर्टी' कहना आपके अंग्रेजी विषय के ज्ञान को अवश्य प्रकट करता है। लेकिन बहुभाषी होना भी तो शिक्षित व्यक्ति का गुण है। आखिर यह कैसी शिक्षा प्रणाली है, जिसमें न कोई भाषा और न ही कोई जिज्ञासा है। "वन थर्टी, बज गए" से सिर्फ इतना समझ आया कि वर्तमान समय अधूरे ज्ञान और झूठी शान के साथ तेजी से बढ़ रहा है।
✍️ हितेन्द्र शर्मा
किंगल, जिला शिमला, हि.प्र.
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