मन की बात
अब नहीं करता मैं
बस मन ही मन में
बात करता हूँ
कैसे बदल गया है समय
जो था बंधा हुआ
दिन रात और चौबीस में
फिरता है अभी भी
उसी दिशा में समय
दशा को बदल देता है मगर
समय पर नहीं है जोर
किसी का न पकड़
मैं सोचता हूँ समय बढ़ गया
लेकिन चौबीस में ही देखता हूँ उसे
कितना बदल गया है समय
कैसे बदल गया है समय
बस मन में ही
बात करता हूँ ।
अब नहीं करता मैं
बस मन ही मन में
बात करता हूँ
कैसे बदल गया है समय
जो था बंधा हुआ
दिन रात और चौबीस में
फिरता है अभी भी
उसी दिशा में समय
दशा को बदल देता है मगर
समय पर नहीं है जोर
किसी का न पकड़
मैं सोचता हूँ समय बढ़ गया
लेकिन चौबीस में ही देखता हूँ उसे
कितना बदल गया है समय
कैसे बदल गया है समय
बस मन में ही
बात करता हूँ ।
✍️ राजेश सारस्वत
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