Thursday, 13 February 2020

सच्ची गल्ल

चढ़दा  रोज  घरोई  जा,
माह्णू  भारे   ढोई  जा।

काम्मा कम्म कमाई जी,
धाड़ोधाड़   पटोई   जा।

पैसे    ब्हाल़ा    घूंघुट्ठा,
टैक्सां  हेठ  दबोई  जा।

चक्कर पुट्ठा चल्ला दा,
काल़ा खूब गठोई जा।

भारत भू दी भगती दा,
नौंआं गीत लखोई जा।

छैल़ 'नवीना' कवियां ते,
सच्ची गल्ल गलोई जा।
          
✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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