नया दौर नया ज़माना
नया दौर है नया ज़माना
मैं बात पुरानी कहता हूँ
कौन समझेगा मुझे
मैं आंखों की
ज़ुबानी कहता हूँ।
कहना हो कुछ तुम्हें
तो खामोश रहता हूँ
निकल जाते है
अनकहे राज़ बेसुरे गीत
मैं जब मदहोश रहता हूँ
कौन समझेगा मुझे
मैं आंखों की
ज़ुबानी कहता हूँ।
नया दौर है नया ज़माना
मैं बात पुरानी कहता हूँ।
✍️ राजेश सारस्वत
खामोश अल्फाजों का सहारा सिर्फ आंखें ही बनती हैं। कुछ लोग इसको एक हथियार के तौर पर भी आजमाते हैं आपने बहुत अच्छा लिखा है
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