Friday, 7 February 2020

"रड़का दे" गीत

घर-घर डौल़े फड़का दे,
देस - द्रोहिये  रड़का  दे।

झूठो - झूठ  गलाणे  ते,
सुच्चे कविये अड़का दे।

काल़े थन्धे करियै जी,
वेगुरपीरे    गड़का    दे।

हौआ झुल्लै भारत दी,
पील़े पत्तर खड़का दे।

कानूनां  जो  पढ़िये  जी,
चोर - उचक्के भड़का दे।

दिक्ख 'नवीन' कबाड़े जो,
धुड़-धुड़ धुड़कू धड़का दे।
         
✍️ नवीन हलदूणवी
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

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