Friday, 14 February 2020

बरसात की रात

रुक्मा के दो बच्चे थे, अभी स्कूल में दाखिला भी नहीं हुआ था। रजो को घर की बड़ी फिक्र रहती थी, छत पर एक भी स्लेट नहीं थी। फटा तिरपाल था बस उससे ही घर को aढक रखा था। रुक्मा ने तिरपाल के लिए भी कर्ज ले रखा था। दिनभर मजदूरी करता और रात को खेत में लगी फ़सल की जंगली जानवरों से रखवाली। 
एक दिन रजो ने रुक्मा से कहा :- 
              
अजी सुनते हो!   हाँ कहो                                 

अपने लिए एक कुर्ता तो बनवा लेना, मैंने 200 रुपये बड़ी मुश्किल से बचा कर रखे थे कि कभी मुसीबत में काम आएँगे। अब आपके कुर्ते की हालत देखकर यही अच्छा है कि अपने लिए कुर्ता बनवा लो।     
                                       

रुक्मा :- हाँ ठीक है कुछ दिनों बाद देखता हूँ, अभी बरसात का समय है कुछ दिन बाद लेता हूँ। अगले ही दिन जीवा घर आया और रजो से कहा कि रुक्मा को कहना कुछ उधार लिया था जो उसको वापिस कर दे। शाम को रुक्मा के आने पर रजो ने रुक्मा से कहा।                   
आज जीवा आया था।     
                               
रुक्मा :- पता है 200 रुपया उधार लिया था उसको माँग रहा होगा।    
                               
रजो :- उसको कह देना कि फसल आने के बाद दे देंगे। हम कहीं जा तो नहीं रहे हैं।  अपने लिए कुर्ता खरीद लेना, फसल का पैसा जीवा को लौटा देंगे।                                                   रुक्मा :- नहीं, उसको उधार लौटाना ही अच्छा है। पता नहीं लोगों के बीच क्या क्या सुना डाले। 
रुक्मा ने जीवा को उधार लौटा दिया जो छत की तिरपाल के लिए लिया था। बरसात की रात का समय था, जीवा खेत की रखवाली के लिए गया था। एक चक्कर लगाने के बाद रुक्मा घर वापिस आया। आज मौसम भी कुछ गंभीर था। सरकार की तरफ से भी चेतावनी दी गई थी कि मौसम खराब रहेगा और नुकसान भी हो सकता है। घर आकर रुक्मा का परिवार तिरपाल की छत के नीचे आराम से सो रहा था कि उस रात बरसात ऐसी बरस गई जिसका रुक्मा को अंदाजा न था। भारी बारिश के चलते रुक्मा का तिरपाल की छत वाला घर तबाह हो गया और नींद में सो रहे दोनों बेटे और पत्नी मलवे के नीचे दब गए। वह बरसात की रात रुक्मा का सब कुछ उजाड़ कर ले गयी। 

✍️ राजेश सारस्वत



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