ग़ज़लों में अब बहर कहां है ?
अपनेपन को ढूंढ रहा है,
ऐसा जग में शहर कहां है ?
सूख गई हैं सारी नदियां,
नव-रस वाली नहर कहां है ?
बदल रहे हैं तौर-तरीके,
सुबह हुई दोपहर कहां है ?
यार पता तो सबको चलता,
शुद्ध हवा में जहर कहां है ?
चोट "नवीन"अहं को लगती ,
इससे बढ़कर कहर कहां है ?
✍️ नवीन हलदूणवी
8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।
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