Wednesday, 11 March 2020

ग़ज़ल


गंगा-यमुनी  लहर  कहां  है,
ग़ज़लों में अब बहर कहां है ?

अपनेपन  को  ढूंढ  रहा  है,
ऐसा जग में शहर कहां है ?

सूख  गई  हैं  सारी  नदियां,
नव-रस वाली नहर कहां है ?

बदल  रहे  हैं  तौर-तरीके,
सुबह हुई दोपहर कहां है ?

यार पता तो सबको चलता,
शुद्ध हवा में जहर कहां है ?

चोट "नवीन"अहं को लगती ,
इससे बढ़कर कहर कहां है ?
         
✍️ नवीन हलदूणवी
 8219484701
काव्य - कुंज जसूर-176201,
जिला कांगड़ा ,हिमाचल प्रदेश।

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