Sunday, 26 January 2020

पाषाण मानव

पत्थर के थे उनके घर
फर्श, दीवारें, छत 
सब पत्थर के

आग थी पत्थरों में
औजार पत्थरों के

पत्थरों में उकेरते थे कला
पत्थरों में खुदा हुआ था
पत्थरों की तरह पक्का
उनका सच

पत्थरों के बीच रहते भी
धड़कता था उनका दिल
रिश्ते थे पत्थरों की तरह पक्के
और वे थे खरे मानव

पाषाण मानव कहने वालों की
तुम ही बताओ।

✍️ दिनेश शर्मा

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