हाँजी बिल्कुल जी सत्य कहा आपने
हाँजी बिल्कुल सही पहचाना आपने,
बिल्कुल जी मैं तो गाँव का लड़का हूँ
गाँव के लोक जीवन को जीता जी हूँ||
नही हैं जी मेरे पास वो ऊँची कोठियां
नही हैं जी मेरे पास वो ऊँची डिग्रियाँ,
बस वो गाँव के विद्यालय ही देखे मेने
सुखदुख में गाँव के देवालय देखे मेने||
छतों से टपक जाता वर्षा में भी पानी
बन रही है जाने कैसे मेरी भी कहानी,
बिल्कुल जी मैं तो गाँव का लड़का हूँ
गाँव के लोक जीवन को जीता जी हूँ||
आने लगे मेरे गाँव वासी भी शहरों में
खोने लग चुके वो तो तुम्हारे शहरों में,
मेरी हालातों को देखकर हँसने लगे हैं
देखकर वो मुझे मज़ाक बनाने लगे हैं||
ऊँची पहाड़ी से गिर जाते है जब पशु,
तो रोते देखा हैं मेने तो अपनो को भी
हद से ज्यादा जब परिस्थिति बड़ती है,
तो खोते देखा है मेने तो सपनो को भी||
कहाँ छिड़क पाता हूँ इत्र मैं तो वस्त्रों में
मेरा तो इत्र भी पसीना ही बना हुवा है,
जी रहा हूँ मैं तो बस कैसे भी जीवन में
बाकी प्रशन तो अभी कहाँ हल हुवा है||
हाँजी बिल्कुल जी सत्य कहा आपने
हाँजी बिल्कुल सही पहचाना आपने,
बिल्कुल जी मैं तो गाँव का लड़का हूँ
गाँव के लोक जीवन को जीता जी हूँ||
✍️ रजत ठाकुर
भोत बोडिया रजत भाईया
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