अब के रात रौशन है मगर धुंधला सवेरा है।
शाखाएं सूख चुकी हैं,ताज़्जुब दरख़्त हरा है।
वाकया तो ये भी है के मेरी बाद की नस्लों में।
मुहब्बत है नहीं,हर शख़्स नफ़रत से भरा है।
मुमकिन है के तुम्हें दुआ के बदले दुआ मिले।
अब वहां चराग जलाओ जहां घना अंधेरा है।
मुश्किल से मिलती थी,सौगातें कभी इश्क़ की।
इश्क़ अब कैद है,हर शख़्स जिस्मों पे ठहरा है।
कोई देखें तो मालूम हो जन्नत की हक़ीक़त।
ये तो हम भी जानते हैं,ये राज़ बड़ा गहरा है।
गुज़रा वक्त गुज़र गया,आने वाला भी आएगा।
जो आज में जीते हैं,वक्त उन्हीं का सुनहरा है।
जी लो ज़िंदगी का हर लम्हा,ज़िंदगी के रहते ही।
यहां हर नफ़स पे हर वक्त,बस वक्त का पहरा है।
✍️ सतीश कुमार
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