Sunday, 2 February 2020

जीवन की परिभाषा

ज़िन्दगी में एहसासों, संवेदनों की अनुभूतियों, सामाजिक संबंधों में प्रवीणता और मधुरता, दूसरों की ख्वाहिशों में अपनी मन्ज़िलों को तलाशने की प्रवृत्ति में जो सुखानुभूति होती है उसे शब्दों में वर्णित करना मुश्किल होता है। जब दो चाहतें सामने हों या बहुत बहुत सी चाहते सामने हों तब सभी से तालमेल स्थापित करना आसान नही होता। ज़िन्दगी न सिर्फ़ जीवन जीने के एक ढंग को अभिव्यक्त करती है बल्कि उसमें सुंदरता का भी समावेश होता है यह सुंदरता हमारी संवेगात्मक मनोवृतियों के कुशल संचालन पर काफ़ी हद तक अवलम्बित होती है। हम अपनी ज़िंदगी में जो भी हों, जिस भूमिका में भी हों, हमें अपनी भूमिकाओं को सही रूप में निभाना चाहिए। यदि हम इसमें असफ़ल रहते हैं या हमारी लापरवाही का इसमें योगदान होता है या हमारे इच्छित नकारात्मक संवेगों की इसमें भूमिका होती है तो फ़िर हम कुछ होकर भी कुछ नही होंगे। जीवन में जो भी लक्ष्य प्राप्त हों, उसका होना सिर्फ़ अपने लिए नही होता।

       जीवन समावेश का एक नाम है जहाँ न सिर्फ़ हम होते हैं बल्कि दूसरे भी होते हैं। जब होना सिर्फ़ अपने लिए होता है या अपने स्वार्थों के लिए होता है तब उस होने का बहुत अर्थ नही होता। होने की सार्थकता स्वयं और परम (उत्कृष्ट) दोनों में है। होना यदि परम से ख़ाली हो तो वह स्वयं, सीमित होता है और जीवन की सार्थकता इस सीमित स्वयं से ऊपर है। इसलिये जीवन और स्वयं को पहचानना आवश्यक है। दुनिया में हमारा होना सिर्फ़ होना नही है इस होने के अपने उद्देश्य हैं जिसे समझे बिना हम अपने व्यक्तित्व को आकर्षक नही बना सकते। 

   जीवन जहाँ प्रयोगात्मक है वहीं प्रयासों पर भी आधारित है। हम अपने प्रयासों से न सिर्फ़ ख़ुद को उन्नत बना सकते हैं बल्कि आसपास के वातावरण को भी शुद्ध कर सकते हैं। दुःखों का होना न सिर्फ़ विकास के लिए आवश्यक है बल्कि हमारे व्यक्तित्व के परिमार्जन और उसकी उन्नति के लिए भी आवश्यक होता है। इसी कारण सृष्टि में दुःखों की व्याप्ति है, क्योंकि इसी से होना सिद्ध होता है।इसलिए अपने होने को सिर्फ़ होने तक सीमित न रखें बल्कि इसे परम (उत्कृष्ट, श्रेष्ठ) के स्तर तक ले जाने का प्रयास करें वरना होने की जो सार्थकता है या उसमें जो उद्देश्य निहित होते हैं वे सीमित होकर रह जाएंगे, उसकी व्यापकता नष्ट हो जाएगी।
                   
कभी जीने की आशा,
कभी मन की निराशा,
कभी खुशियो की धूप,
कभी हकीकत की छांव,
कुछ खोकर कुछ पाने की आशा,
शायद यही है जीवन की परिभाषा...!!!

✍️ डॉ. सुरेन्द्र शर्मा

1 comment:

  1. विचारों की उत्कृष्ट दिग्दर्शन का आभास कराती है ये मार्मिक पंक्तियाँ जी ।

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